अब कहां मिलता है निश्चल
मन वाला प्रेम…
वह पत्रों, खतों और चिट्ठी वाला
सच्चा प्रेम।।
जब प्रीतम मिल ना पाते थे महीनों एक
दूसरे से।
मिलना मिलाना तो बहुत दूर वार्ता भी
ना होती थी उनके मध्य में।।
लड़कियां जब थोड़ी युवावस्था में पहला चरण
रखती थी।
उसी क्षण से मां की खाट पिता जी से पृथक हो
जाती थी।।
अब लड़की पर सदैव मां की आंखे लगी
रहती थी…
सच है तब मन में उनके कोई खुराफात
ना चलती थी…
छोटकी बहन लड़की की डाकिये का काम
करती थी।
लड़के के छोटे भतीजे को भी यह नौकरी करनी
पड़ती थी।।
सारी भावनाएं पत्रों के माध्यम ही एक दूसरे की
ज्ञात होती थी।
इन खतों की महक कभी किताबों में तो कभी घर पर रखे लिबासों में रहती थी।।
प्रेमी का मन हजार बार प्रेमिका का पत्र
पढ़ता, देखता था…
हर बार पढ़ कर वह सम्पूर्ण दिन प्रेम की
अनुभूति में रहता था…
बड़ा संभाल कर इन पत्रों को
रखा जाता था।
प्रेम के इन वाहकों को संपति
समझा जाता था।।
बड़ी चिंता होती थी बड़ो की
प्रतिष्ठा की…
अपने पुरखो के सम्मान की
अभिरक्षा की…
लोक लज्जा ऐसी कि..
कभी उनकी आंख समाज मे ना उठ पाती थी।
मर्यादा ऐसी कि…
टूटने से पहले जिंदगी को मृत्यु आ जाती थी।।
प्रेम की डोर भी अत्यंत कठोर होती थी।
जो किसी भी भ्रम से ना क्षणभर में टूटती थी।।
वह निश्चल प्रेम…
हृदय में सदैव प्रज्वलित रहता था।
मन हमेशा…
प्रेमानंद से आंनदित रहता था।।
मिलन के नाम पर मात्र गांव का एक ही
मेला होता था।
उस दिन ही प्रेमियों का आमने सामने
दर्शन होता था।।
तब की स्मृतियां प्रेम की मन मे ही रह
जाती थी।
मिलन हो ना हो किन्तु प्रेम की आयु गुजर
जाती थी।।
पिता जी भाईयों की प्रतिष्ठा का भय हमेशा ही
लगा रहता था…
अब के प्रेमी क्या जाने वह पत्रो,खतों और चिट्ठी
वाला प्रेम कैसे रहता था…
अब कहां मिलता है निश्चल
मन वाला प्रेम…
वह पत्रों, खतों और चिट्ठी वाला
सच्चा प्रेम।।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




