मौत का सफ़र: 'मैं तो तैयार थी'
(रदीफ़: मैं तो तैयार थी)
मैं तो अज़ल (आरंभ) से इक फ़ैसला थी, बस तेरी आवाज़ का इंतज़ार रहा, मुझे क्या पता था कि ज़िंदगी इतनी बेवफ़ा होगी, मैं तो तैयार थी।
वो जो ख़्वाब थे तुम्हारे, वो आँखों में ही खत्म होने थे, मैं रास्ते में ठहर गई, पर क़िस्मत नहीं, मैं तो तैयार थी।
अरे मैंने देखा है कि तुम हर रोज़ खुद को मारते रहे पल-पल, तुम्हारी आदतों में मेरी तोहीन थी, मगर क्या करूँ, मैं तो तैयार थी।
किसी की मोहब्बत अधूरी थी, किसी का काम नामुकम्मल रहा, मुझे गुनाहगार माना गया, पर क्या करूँ, मैं तो तैयार थी।
मैं गुज़रती रही ज़िंदगी के हर मोड़ से ख़ामोशी के साथ, वो तुम्हारी दौड़ थी जो रुकती नहीं थी, मैं तो तैयार थी।
मुझे याद है वो पल जब तुमने ख़ुद को सबसे ज़्यादा टटोला, वो अकेलापन मेरा था, तुम्हें मालूम नहीं, मैं तो तैयार थी।
ये दुनिया मुझे अंजाम समझती है, पर मैं तो बस शुरुआत हूँ, तुम्हारा सफ़र मुझसे शुरू होगा, ये तुम न जानते थे, मैं तो तैयार थी।
- ललित दाधीच

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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