अकेलेपन से
डर लगता है
समय का पहिया जैसे
थम सा जाता है
दिनचर्या, जैसे
जम सा जाता है
सूरज, जल्दी चलता नहीं
शाम, जल्दी ढलता नहीं
क्या कहूं,दोपहर की
चिढ़ाते हैं, ठहर ठहर सी
एक पल
चार प्रहर लगता है
अकेलेपन से
डर लगता है
मन खाली हो जाता है
तन खाली हो जाता है
सोंचने का मन नहीं करता
कुछ करूं, ये तन नहीं करता
बैठे कहां, कहां हों खड़े
चिढ़ाती है,घर की
दीवारें बड़े बड़े
फिर क्या करूं
किवाड़ों की कुण्डियां गिनूं
खालीपन का कहर लगता है
अकेलेपन से
डर लगता है
बातें करूं
स्वयं से कितना
वितर्क करूं
स्वयं से कितना
ख़ुद से क्या सवाल पुछूं
खुद से क्या जवाब दूं
किसे कितना याद करूं
किससे कितना फरियाद करूं
बेचैन रहना, बेबैन रहना
बड़ा उखर लगता है
अकेलेपन से
डर लगता है।
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




