दर-दर भटकती एक ज़ख़्मी लड़की
उसे देखते हीं बन्द हो जाता
किसी का दरवाज़ा किसी की खिड़की
इंसान की खाल में सड़क पर घूम रहे थे जो भेड़िये
गिरती उठती लड़खड़ाती शिकार थी वो उसकी
लोग न जाने क्यों अपनी संवेदना किताबों में दफ़न कर
अपने घर में तथाकथित महफ़ूज बच्चों को
पाठ पढ़ा रहे थे मानवता की