हर भ्रष्टाचारी उल्लू बन गया है,
आंखों की रोशनी नोटों के रंग देखकर बढ़ जाती है,
घट जाती है।
इसमें कोई आश्चर्यनहीं,
हर शाख पर उल्लू बैठा है।
नाम अलग, विभाग अलग
मगर न्याय को डसने तैयार बैठा है।
बिक रहा है,
न्याय सरेबाजार।
जनता करें हाहाकार,
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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इसमें कोई आश्चर्यनहीं,
हर शाख पर उल्लू बैठा है।
नाम अलग, विभाग अलग
मगर न्याय को डसने तैयार बैठा है।
बिक रहा है,
न्याय सरेबाजार।
जनता करें हाहाकार,