हर भ्रष्टाचारी उल्लू बन गया है,
आंखों की रोशनी नोटों के रंग देखकर बढ़ जाती है,
घट जाती है।
इसमें कोई आश्चर्यनहीं,
हर शाख पर उल्लू बैठा है।
नाम अलग, विभाग अलग
मगर न्याय को डसने तैयार बैठा है।
बिक रहा है,
न्याय सरेबाजार।
जनता करें हाहाकार,
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बिक रहा है,
न्याय सरेबाजार।
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