झूमते पल्लव पुलक पात
क्या गाती आज कनक रात?
लघु बूंदों का पीकर प्याला
बिखेरी किसने रजत आभा।
करुणा के कण कण से निर्मित
मुस्काता सदैव नील नभ ।
मधुर वेदना को छलकाता
उर्वी उष्ण बन तपती जब।
सुला क्रंदन के नीरव गान
हुआ व्यापक बढ़ाता मान।
एक स्पंदन पर किंतु ध्यान
सरस सुख का ना कोई भान।
चुप है चंचल चितवन लेटे
विस्तृत उर में प्रलय समेटे।
देखता मूक बस पंथ पथरीले
पुष्पित पीड़ा में मधुमास रसीले।
_ वंदना अग्रवाल 'निराली'