चांदनी रात और ये जज़्बात...........?
दोनों मिलकर कहर सा ढ़हा देते हैं...!
मध्यम मध्यम सी छनकर आती रोशनी
शीतलता लिए हुए दोनों खून जमा देते हैं...!
रग रग में सिहरण ठंडक की और ख़्यालात
बातों बातों में ही जन्नत की सैर करा देते हैं...!
क्या खूबसूरत थे वो दिन संगदिल के साथ
यादों एक झोंका और लब्ब मुस्कुरा देते हैं...!
रेत पर बरबस इधर उधर चलती उंगलियां
उसका चेहरा बना के अनायास ही मिटा देते हैं...!
काश ये चांद चांदनी संग हमारे जज़्बात भी
सुना है की ये रात और चांदनी बिछुड़ों को मिला देते हैं...!
मानसिंह सुथार©️®️