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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

फ़िर ना कहना नये युवावो - तेज प्रकाश पांडे


छा रहा है तिमिर घोर का दीप्त प्रकाश कहा है
चारो तरफ धरा यह देखे मानवता अब कहा है
है भारत का भाग्य पुकारे नूतन मार्ग कहा है
धरा कर्म की आज पुकारे मेरा कर्म कहा है
सत्ताओ के खेल अनुठे अनसुलझे से यहाँ है
पावन लोकतंत्र की गुजे जनता से जहा है
यौवन से भरके अह्लादित भारत भूमि वही है
पर बन गई बोझ वह कर्म धर्म में नहीं है
अवसर बेहतर वह ना पाये या कौशल पूर्ण नहीं है
पर इन सबमे साँची मानो उनका दोष कहां है
योग ज्ञान का केंद्र था भारत विश्वगुरु था कहलाता
अपनी मानव शक्ति पर था सदा भाग्य से इठलाता
आख़िर वह फ़िर क्यू नहीं होता वह विश्वास कहा है
साहस ऊर्जा देने वाला योग ज्ञान बल कहा है
अपनी कीर्ति धूमिल करना संस्कृति को पिछड़ापन कहना
पावन गौरव से न उठना नयी परम्परा है
ऊर्जा से जो दामन भर दे ऐसा यौवन कहा है
उठो जगो अब न वक्त गवाओ
इतना समय कहा है
अभी ना जगे होगी देर फ़िर प्रश्न का अर्थ कहा है
नई शक्ति का स्रोत बनो तुम लो अधिकार जहां है
फ़िर ना कहना नये युवाओ भारत अभी कहा है
राम कृष्ण गौतम की धरती ऐसी भला कहाँ है
ईन सबसे कुछ ले ना पाये चुक हमारी यहाँ है
भरो जवानी की हुंकार लो अधिकार जहां है
फिर तुम ये प्रश्न ना करना भारत अभी कहा है
बोझ नहीं तुम महाशक्ति हो खोजो
मार्ग जहा है
सको तो खोजो अंतर्मन में मानवता अब कहा है
नूतन पथ को गढ़ने वालो. क्यों चुप चाप खड़े हो
खुद को अब इसपे झौको भारत अभी कहा है
विश्वगुरु कहलाने वाले भूल गए गीता का ज्ञान
कर्म योग और ध्यान मार्ग तुम बिसरे अपना चरित्र महान
बार बार तुम खुद पे देखो भूल हमारी यहाँ है
कर्म भूमि में भोगो को होते
लालायित जहा है
उठो चलो अब कदम बढ़ाओ भेदभाव की रीति भुलाओ
सब को मिलकर गले लगाओ
अपने मार्ग को स्वयं बनाओ
तूफानो से अब टकराओ
कर्म योग की अलख जगाओ
मानवता को जाके बताओ
कहि न ढूंढो आओ भारत दिव्य प्रकाश जहा है
भारत को फिर खूब सजाओ पूछे न कोई कहा हैl

तेज प्रकाश पांडे (युवा कवि)
[इको क्लब अध्यक्ष, जिला सतना, मध्य प्रदेश]




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (11)

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आत्माराम जानकी said

बहुत खूब युवाओं को साहित्य में रूचि बहुत पहले से ही रही है बहुत सुन्दर रचना युवा कवि महोदय जी

तेज प्रकाश पांडे said

आप सभी का आभार जो मुझे इतना प्यार देते हैं आओ सब साथ मिल कर गंदा वातावरण हटये और नव भारत का निर्माण करे

Kamalkant said

"बोझ नहीं तुम महाशक्ति हो खोजो मार्ग जहा है" बहुत खूब एक आह्वान हुआ है सुन्दर आह्वान जोश से परिपूर्ण Lajwaab

तेज प्रकाश पांडे said

Kamalkant ji yah un motivational guruo ke gal par chanta hai jo aajke yuvao ko motivate karne ke liye glat aachran ke sapne dikhate hai sahitya ka dharm hai ki o sadhya ke sath sadhan ki pavitrta ke sath motivate kare

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

बहुत सुन्दर तेज प्रकाश पांडेय जी - साहित्य ने बड़े बडों को हिला दिया यदि देखा जाये तो कैसे? वैसे जैसे भगत सिंह का आह्वान हुआ, जैसे दिनकर जी की रचनायें माफ़ कीजियेगा किसी से तुलना करने का उद्देश्य नहीं है पर साहित्य उन नीवों को हिलने के लिए आपके जैसे कवि की बदलत सक्षम है - प्रेम प्रकृति देशभक्ति या कुछ और सब पर लिखना कह सकते हैं आसान है - वास्तव में रचना वह होती है जो सामाजिक परिवर्तन ला सके - एक खूबसूरत उत्साहवर्धक कविता

अमित श्रीवास्तव said

kya baat hai adbhut Rachna bahut Sundar Pande ji

Muskan Kaushik said

बहुत अच्छी और प्यारी रचना

तेज प्रकाश पांडे said

प्रिय अशोक जी आपने मेरी तुलना भगत सिंह और दिनकर जी से की ये आपका प्यार है मेरे लिए हलांकी इनके सामने जुगनू भी नहीं हूं फ़िर भी आपका आभार

अनुष्का सिंह said

बहुत सुन्दर कविता नतमस्तक 👏👏

तेज प्रकाश पांडे said

Thanks Anushka

चित्रा बिष्ट said

Bahut prernadayak

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