
छा रहा है तिमिर घोर का दीप्त प्रकाश कहा है
चारो तरफ धरा यह देखे मानवता अब कहा है
है भारत का भाग्य पुकारे नूतन मार्ग कहा है
धरा कर्म की आज पुकारे मेरा कर्म कहा है
सत्ताओ के खेल अनुठे अनसुलझे से यहाँ है
पावन लोकतंत्र की गुजे जनता से जहा है
यौवन से भरके अह्लादित भारत भूमि वही है
पर बन गई बोझ वह कर्म धर्म में नहीं है
अवसर बेहतर वह ना पाये या कौशल पूर्ण नहीं है
पर इन सबमे साँची मानो उनका दोष कहां है
योग ज्ञान का केंद्र था भारत विश्वगुरु था कहलाता
अपनी मानव शक्ति पर था सदा भाग्य से इठलाता
आख़िर वह फ़िर क्यू नहीं होता वह विश्वास कहा है
साहस ऊर्जा देने वाला योग ज्ञान बल कहा है
अपनी कीर्ति धूमिल करना संस्कृति को पिछड़ापन कहना
पावन गौरव से न उठना नयी परम्परा है
ऊर्जा से जो दामन भर दे ऐसा यौवन कहा है
उठो जगो अब न वक्त गवाओ
इतना समय कहा है
अभी ना जगे होगी देर फ़िर प्रश्न का अर्थ कहा है
नई शक्ति का स्रोत बनो तुम लो अधिकार जहां है
फ़िर ना कहना नये युवाओ भारत अभी कहा है
राम कृष्ण गौतम की धरती ऐसी भला कहाँ है
ईन सबसे कुछ ले ना पाये चुक हमारी यहाँ है
भरो जवानी की हुंकार लो अधिकार जहां है
फिर तुम ये प्रश्न ना करना भारत अभी कहा है
बोझ नहीं तुम महाशक्ति हो खोजो
मार्ग जहा है
सको तो खोजो अंतर्मन में मानवता अब कहा है
नूतन पथ को गढ़ने वालो. क्यों चुप चाप खड़े हो
खुद को अब इसपे झौको भारत अभी कहा है
विश्वगुरु कहलाने वाले भूल गए गीता का ज्ञान
कर्म योग और ध्यान मार्ग तुम बिसरे अपना चरित्र महान
बार बार तुम खुद पे देखो भूल हमारी यहाँ है
कर्म भूमि में भोगो को होते
लालायित जहा है
उठो चलो अब कदम बढ़ाओ भेदभाव की रीति भुलाओ
सब को मिलकर गले लगाओ
अपने मार्ग को स्वयं बनाओ
तूफानो से अब टकराओ
कर्म योग की अलख जगाओ
मानवता को जाके बताओ
कहि न ढूंढो आओ भारत दिव्य प्रकाश जहा है
भारत को फिर खूब सजाओ पूछे न कोई कहा हैl
तेज प्रकाश पांडे (युवा कवि)
[इको क्लब अध्यक्ष, जिला सतना, मध्य प्रदेश]

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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