मन को भी नहलाती है
बूंदें ये सावन की
तन को भी नहलाती हैं
बूंदें ये सावन की
घुमड़ घुमड़ घुमड़ती है
बादल काली काली जब
सुधि प्रियतम की लाती हैं
बूंदें ये सावन की
अपनी यौवन में झूमते जब
खेतों में धान के पौधे
सन सन गीत सुनाती हैं
बूंदें ये सावन की
आसमान से झरती जब
सागौन की चौड़ी पत्तों पर
तबले की ताल सुनाती हैं
बूंदें ये सावन की
बहती है पावस की धारा
गलियों और आंगन में
घुंघरू की खनखन गाती हैं
बूंदें ये सावन की
उछल उछल कर नाचे जब
चंचल बचपन आंगन में
पांवों को थिरकाती हैं
बूंदें ये सावन की
धरती की कोमल आंगन में
मस्ती भरी कीट पतंगों में
सुर श्रृंगार सजाती हैं
बूंदें ये सावन की
श्रमवीर मजदूरों के
थके हाथ और पांवों में
नव ऊर्जा ले आतीं हैं
बूंदें ये सावन की
डालियों में बंध जातीं जब
झूलों की डोरियां
तन-मन को झूलातीं हैं
बूंदें ये सावन की
पसर गई जो धरती पर
कोमल कोमल हरियाली में
हरियाली भर जातीं हैं
बूंदें ये सावन की
नन्ही नन्ही पांवों की
सुन सुन छप छप छई
यादें बचपन की लातीं हैं
बूंदें ये सावन की
मखमली कोमल मौसम में
हर चेहरे पर खुशहाली
उत्सव लेकर आतीं हैं
बूंदें ये सावन की
जड़ चेतन हर्षाने वाली
धरती को नहलाने वाली
प्रकृति की अनमोल कृति है
बूंदें ये सावन की।
सर्वाधिकार अधीन है