कभी कभी डर लगता है
डर लगता है मुझे
आज भी अपनी बेटी को बाहर भेजने से
आज़ादी के दौर में भी
उसे स्वावलंबी बनाने में डर लगता है ।
हर धर्म के लोगों की इज्जत कराने में डर लगता है ।
पक्षपात भूल मिलजुल कर रहने की सलाह देने से डर लगता है ।
आधुनिक युग में भी
अपना धर्म ही सही है यही बोलने को मन करता है ।
सब जाति अलग हैं यह कहने को मन करता है ।
मन चाहा जीवन साथी कौनसा मुखौटा पहने बैठा होगा यह समझाने को मन करता है ।
अखण्ड राष्ट्र में भी
अपना धर्म ही है सच्चा सहायक यही सीख देने को दिल कहता है ।
आज इन्सान नहीं उसकी शक्ल के भेड़िए घूमते हैं यही सीख देने को दिल कहता है ।
आँखों से ही चीर डालने का दम रखती है तू ,ऐसा ख़ौफ आँखों में लेकर चलना यही सीख देने को दिल कहता है ।
डर लगता है कभी कभी
फिर दिल कहता है कि यह आज की बेटी है।
ठान ले अगर तो हर लड़ाई को जीतने की ताक़त रखती है
क्योंकि शक्ति है वो…
वन्दना सूद