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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

कभी कभी डर लगता है

कभी कभी डर लगता है
डर लगता है मुझे
आज भी अपनी बेटी को बाहर भेजने से

आज़ादी के दौर में भी
उसे स्वावलंबी बनाने में डर लगता है ।
हर धर्म के लोगों की इज्जत कराने में डर लगता है ।
पक्षपात भूल मिलजुल कर रहने की सलाह देने से डर लगता है ।

आधुनिक युग में भी
अपना धर्म ही सही है यही बोलने को मन करता है ।
सब जाति अलग हैं यह कहने को मन करता है ।
मन चाहा जीवन साथी कौनसा मुखौटा पहने बैठा होगा यह समझाने को मन करता है ।

अखण्ड राष्ट्र में भी
अपना धर्म ही है सच्चा सहायक यही सीख देने को दिल कहता है ।
आज इन्सान नहीं उसकी शक्ल के भेड़िए घूमते हैं यही सीख देने को दिल कहता है ।
आँखों से ही चीर डालने का दम रखती है तू ,ऐसा ख़ौफ आँखों में लेकर चलना यही सीख देने को दिल कहता है ।

डर लगता है कभी कभी
फिर दिल कहता है कि यह आज की बेटी है।
ठान ले अगर तो हर लड़ाई को जीतने की ताक़त रखती है
क्योंकि शक्ति है वो…
वन्दना सूद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

श्रेयसी said

Sahi kaha aapne 🙏🙏

वन्दना सूद replied

सही में ma’am news बेख़ौफ़ जीने ही नहीं देतीं

रीना कुमारी प्रजापत said

आज की बेटी है वंदना जी आप कुछ ना भी कहेगी तो भी वो सब संभाल लेगी....👏👌🙏

वन्दना सूद replied

AAP sahi hain but reality beyond imagination hi hai 😌

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