भूख की मारी हुई यह जिंदगी
खूब बीमारी हुई यह जिंदगी I
झूठ के पलड़े हमेशा भारी हों
ऐसी व्यापारी हुई यह जिंदगीI
नजर की ताजगी है बेमिसाल
आज आभारी हुई यह जिंदगीI
यातना ये अब सही जाती नहीं
गहन लाचारी हुई यह जिंदगी।
जिस डालपे हैं काटेगी उसे ही
दास वो आरी हुई यह ज़िन्दगी I
तुम्हें गवारा नहीं थी जीत मेरी
जानकर हारी हुई यह ज़िन्दगीII