अंधेरों में ना गुज़र जाए
ये जिंदगी के पल तमाम
कर लो कुछ काम भईया
कर लो कुछ काम।
खाने गाने बहलाने वाले
भरें पड़ें हैं राहों में।
व्यविचार गंदगी
बुरी व्यसनें पड़ी खड़ी हैं
जकड़ने को अपनी बाहों में।
काल भी दूर खड़ा
बसा रहा तुझे अपनी निगाहों में।
सड़क सड़क दर शहर शहर
गिद्ध खड़े हैं राहों में।
ज़रा सी गलती क्या हुई
नोच लेते हड्डी तक
सरे राहों में।
व्यर्थ ना गंवाओ समय को
अपनी कीमत बढ़ाओ।
ऐरे गौरे नत्थू खैरे
कहां से कहां पहुंच गए ।
और तुम इन्हीं की गंदी भद्दी रील
देख इनकी कीमत बढ़ाने में लग गए।
और तरक्की के अपने समय को
फ्री में लुटाते गए।
ये छपरी ये टपरी कर अंगूठा छाप
बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूम रहें हैं ।
और तो और....
ये बड़े बड़े नेता अभिनेता व्यापारी
इनके माथा चूम रहें हैं।
और तुम्हारे हीं व्यर्थ लुटाए समय से
ये अकूत धन दौलत मान सम्मान कमा रहें हैं और आप साहब...
सिर्फ झुनझुना बजा रहें हैं।
राग सिस्टम की रो रहें हैं।
अब तो उठ जाओ मेरे प्यारों..
अभी भी सोए पड़ें हैं।
सिर्फ सपनों में खोए पड़ें हैं ।
ख्याली पुलाव पका रहें हैं कि
ऐसा होता तो वैसा हो जाता।
ऐसा होता तो मैं वो कर जाता।
सिर्फ बेकार की मगजमारी है।
काम काज गई भांड में
यहां आधी दुनिया जुआड़ी
तो आधी दुनिया पुजाड़ी है।
सिर्फ काम के वक्त रहती इनको
दुःख दर्द सारी बीमारी है...
कहिए जनाब आपकी क्या तैयारी है..
कहिए जनाब आपकी क्या तैयारी है..