कलम और कागज ही बचे थे।
जिस पर भविष्य टिका था,
राष्ट्र का।
आज बेरोजगारी ने उसे भी खा लिया।
महंगाई की मार ने,
आज एक बच्चे के हाथ,
कलम और कागज बिकवा दिया।
झुग्गी और झोपड़ियां
आज भी विकास की धारा से कोसों दूर हैं।
भ्रष्टाचार के कोढ़ ने ,
न्याय को लाचार बना दिया।