~एगो कुण्डलियां छंद~
दुनिया कबो देख लितीं ,हे दुनिया के नाथ।
प्रेम दया भ्रातृत्व के, होता अब परिहास।।
होता अब परिहास, मानवता रोअत घूमे।
खल आ भ्रष्टाचार,चरनिया लोगवा चूमे।।
कह प्यासा भूगोल,भईल जाय बदगुनिया।
आके दुनिया नाथ,देख लितीं कबो दुनिया।।
Vijay Kumar Pandey pyasa
Karpalia