एक बेटी ने अपनी माँ को,
खत लिखकर ये पूछा —
बचपन में माँ तुम मुझसे यही कहा करती थीं,
“मेरे आँचल की बिटिया तू नन्ही सी कली है,
मेरे आँगन में ही खेली और यहीं पली है।”
मुझको भी याद आती हैं अपने बचपन की कुछ हल्की सी परछाई,
चिड़िया सी चहका करती थी, हिरणी सी दौड़ा करती थी।
बात नहीं में किसी की सुनती, मनमानी किया करती थी।
पुष्प बनी मैं हुई यौवना,
मेरी डोली में हुई विदाई।
पलकों पे अरमान सजाए, साजन के घर आई।
माँ... बिखर गई पंखुड़ी पुष्प की, तेरी कली मुरझाई।
सास कहे मुझे साँझ सबेरे — “बहू, दहेज में कार क्यों नहीं लाई?”
मुझको बता माँ, तेरे संग भी ऐसा ही हुआ था,
जब तू ब्याह कर आई?
बेटी का खत पढ़, माँ ने लिख भेजा संदेशा —
“सहनशीलता ही नारी का सबसे सुंदर गहना,
सदियों से नारी को, बिटिया, चुपचाप पड़ा है सहना।”
माँ का पढ़ संदेशा, बेटी के मुख पर दृढ़ता आई —
सहन शक्ति का बांध हैं टूटा
अब विद्रोह करेगी नारी।
नारी, दुर्गा, काली बन जाती,
तब पड़ती सब पर भारी।
-सरिता पाठक


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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