सारे चेहरे नकाब लगते हैं
उलझनों की किताब लगते हैं।।
चाक दामन हुआ तो पहचाना
अब तो कांटे गुलाब लगते हैं।।
आपको क्या गरज है पीने की
आप खुद ही शराब लगते हैं।।
ये हमारी ही कुछ कमी है जो
हम ही सबको खराब लगते हैं।।
मिला जब से कोई ख़्वाब हमें
रंग सब लाजवाब लगते है।।
दास डरता हूं आईने से अब
इसके तेवर खराब लगते हैं।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




