आईने में जब तलक खुद झाँकता नहीं है
अपनी ही सूरत आदमी पहचानता नहीं है
जर्रे जर्रे में रमा अस्तित्व उस भगवान का
आदमी पर उसको दिल से मानता नहीं है
मौसम दिखायेगा यहां नित नये तेवर उसे
जिस्म से थोड़ा पसीना जो ढालता नहीं है
दोस्त से दुश्मन है बेहतर वह हमेशा दास
कोई जहरी आस्तीन में जो पालता नहीं है
ले गया सारा उजाला घर का अपने साथ
अब चरागों में तेल कोई भी डालता नहीं है. .

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




