वक्त पड़ने पे लोग
गधे को भी बाप बना लेते हैं
वरना अपने सगे बस को भी बाप नहीं मानते हैं।
ज़रूरत हो तो पैर भी धो देते हैं
वरना सीधे मुंह बात भी नहीं करतें हैं।
कमाने की होड़ में लोगों ने
क्या क्या नहीं किया
गधों के सींग और बैल का दूध भी बेच दिया।
किया था जिसने जिसपर जितना भरोसा
उसी के हिसाब से उसने उसको धोखा दिया।
व्यक्ति समाज पंथ संप्रदाय के लिए कुछ कभी कुछ ना किया।
जो भी किया सिर्फ स्वार्थ सिद्धि के लिए किया।
और अंत समय में...
जब अपने पर पड़ी तो..
हाय तौबा किया
सबकुछ समझ कर भी
नासमझ बना रहा
ये कैसे हुआ
मेरे ही साथ क्यूं हुआ
बस यही कहते रहा।
बस हाय तौबा करते रहा
बस यही कहते रहा
बस हाय तौबा कर रहा...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




