हर बात निराली बचपन से आज तक तुम्हारी।
प्यार की राह बनाकर बिगाडी समझती अनारी।।
छत पर खेल-खेल में तमाशा करती बचपन में।
छुपा छुपाई कुछ देर बडी नाटकीय समझदारी।।
धूप सूरज की जैसे लगती सिर्फ दूसरो को भली।
खुद छाँव में जाकर 'उपदेश' दिखाती अदाकारी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद