बंदरिया की पूंछ बड़ी,
देखो पेड़ खजूर चढ़ी।
दौड़ी-दौड़ी आई गिलहरी,
पूंछ पे उसकी नजर पड़ी।।
जी भर झूला झूलूंगी ,
नन्हीं गिलहरी उछल पड़ी।
लटक पूंछ में झूला झूली,
आज गिलहरी सुध-बुध भूली।।
बंदरिया तो डर गई भाई,
किसने मेरी पूंछ हिलाई।
बंदरिया ने लगाई छलांग,
गिरी गिलहरी टूटी टांग। ।
😃😃😃😃
शिखा प्रजापति
कानपुर दे.