बातो ही बातो में
दिल तुमको दे बैठा हूँ
हाल क्या जानो मेरे दिल का
नींद चैन खो बैठा हूँ
पहले तनहा था तो नींद न थी
अब साथ हो तो भी नींद नहीं
कहने को तो तुम मेरी हो
मैं जनता हूँ तुम मेरी नहीं
कितना समझाऊं दिल को मैं
यह बात मेरी सुनता ही नहीं
होता है यहाँ रहता है वहां
एक पल भी इसे अब चैन नहीं
जब थक जाता हूँ समझकर
झूठी दिलासा देता हूँ
बाहर हँसता खुश रहता हूँ
लेकिन छुप छुपकर रोता हूँ
बातो ही बातो में
दिल तुमको दे बैठा हूँ
हाल क्या जानो मेरे दिल का
नींद चैन खो बैठा हूँ
पहले जब रोना होता था
मैं तेरे पास ही आता था
तुम मुझको समझती थी
मैं दिल को समझाता था
आज अगर मैं रो जाऊं
तो बोल कहाँ फिर जाऊंगा?
तू है ही नहीं मुझे समझने को
मैं दिल को कैसे समझाऊंगा?
अक्सर जब याद आती है तेरी
आती है बहुत सताती है
कुछ यादों पर मैं हँसता हूँ
कुछ यादों पर रो देता हूँ
बातो ही बातो मैं
दिल तुमको दे बैठा हूँ
हाल क्या जानो मेरे दिल का
नींद चैन खो बैठा हूँ
यदि मैं होता एक कवि
तुझको कविता में लिख लेता
खुद ही लिखता खुद ही पढ़ता
तकिये के नीचे रख लेता
आज तू मेरी आँख मैं उतरी
बनकर आँख का मोती
मैं बंद न करता आँखों को
काश तू मेरी होती
तू जिसकी है उसकी ही रह
यह दिल से तुझसे कहता हूँ
एहशान नहीं एहसास है यह
जो प्यार मैं तुझसे करता हूँ
बातो ही बातो मैं
दिल तुमको दे बैठा हूँ
हाल क्या जानो मेरे दिल का
नींद चैन खो बैठा हूँ
Originally posted at : https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/ashok-pachaury-mere-dil-ka-haal