क्यूं टूट रहें सपनें
क्यूं रूठ रहें अपने
क्यूं प्यार नहीं है
एक दूजे के लिए
सम्मान नहीं है।
बात नहीं
विश्वास नहीं है।
क्या हो क्या गया है
समय का विकराल
रूप
सुंदर भी बन रहा कुरूप
नित नए रूपों में
शामों शहरों में
दिन दोपहरों में
क्यूं आदमी मानसिक
संतुलन खो रहा है
जीत देखो तीत
आदमी तो रहा है
अरे भाई ये क्या हो रहा है...
अरे भाई ये क्या हो रहा है...