रफ्तार ऐ जिन्दगी कुछ धीमी सी कर लो
दौड़ रहे हो क्या पाने के लिए
थक जाओ तो रूक जाना अपनों के लिए
एक शाम कुछ घंटे कुछ मिनट के लिए।
रफ्तार ऐ जिन्दगी कुछ धीमी सी कर लो
यारों से यारी निभाने के लिए
रुक जाओ कुछ यादें पुरानी याद करने के लिए।
रफ्तार ऐ जिन्दगी कुछ धीमी सी कर लो
क्या दोगे तुम अगली पीढ़ी के लिए
गर पूछ बैठी वो तुमसे ,प्रश्न कुछ अपने लिए
माना बहुत है कमाना तुम्हें
पर क्या बचा पाओगे अनंत में अपने लिए।
रफ्तार ऐ जिन्दगी कुछ धीमी सी कर लो
अभी वक्त बहुत है पड़ा
कुछ वक्त निकालो परिवार के लिए
भूल जाओ गिलेशिकवे सारे
गले लगा लो अपनों के लिए।
रफ्तार ऐ जिन्दगी कुछ धीमी सी कर लो
भूल रहे हो तुम धर्म अपना
अब याद कर लो भगवान के लिए
रफ्तार ऐ जिन्दगी कुछ धीमी सी कर लो।।
----अर्चना सक्सेना