बसंत आया मगर प्रेम के फूल ना आए।
जज़्बात धरे के धरे रह गये वह ना आए।।
मेरे हिस्से जो आया बन गया नसीब मेरा।
कभी रखा फूल किताब में वो बेच खाए।।
कविताओ की खुशबू रूहानियत बन गई।
बेहद कम पढने वालो के उसूल टकराए।।
वक्त रहते खो दिया 'उपदेश' उसका क्या।
जिन्दगी चलेगी पर वक्त बापिस ना आए।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद