सीने से लगा कर चूमना ग़ज़ब का वक्त।
डरते डरते लिपटना मन हो गया अशक्त।।
अब अकेले नही है जरूरत एक दूसरे की।
सुख-दुख के साथी हुए अमर प्रेम के भक्त।।
माथे पर प्रेम अंकित कर उत्साहित मन में।
सतरंगी दुपट्टे में देखने को कर रहा व्यक्त।।
खुद के होंठो की मुस्कान रूपी तितलियां।
तुम्हारे नरम होंठो पर सजाने में रहा व्यस्त।।
अब शेष कुछ भी नही होंठो से बुदबुदाया।
परिकल्पना करने में 'उपदेश' पाता सशक्त।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद