बचपन में साथ-साथ खेलते, सारी सुविधा दुविधा मिलकर झेलते,
सोचा नहीं था पर सूरज ढल गया दोस्त तू सच में बदल गया
यह वही दोस्त है जो बचपन में साथ बैठकर खाता था ,
आज अपनी खरी कमाई का जोर मुझे दिखता है ,
ए दोस्त आज मेरे लिए तू जितनी बातें कर सकता है कर,
यार को भी भूल गया भगवान से तो डर,
आज मेरा मेहनत का दौर चल रहा है ,
और तेरी मेरे लिए कही गई बातें,
क्यों याद नहीं आती बचपन की
क्यों उसे भूल जाते हैं
यह दिन तेरे लिए तेरी कामयाबी के लिए है ,
तूने चंद पैसों के लिए क्रूर घाव दिए हैं,
वक्त रहते संभल जा इस मोह माया से बदल जा,
यह काम का बहाना छोड़ कर घर आजा गाड़ी मोड़कर,
हां आज पैसा तेरा साथ दे रहा है लेकिन मुझे अभी पढ़ना है,
छोड़ दहलीज झूठ की एक दिन ऊंची राहों पर बढ़ना,
----अशोक सुथार