"ग़ज़ल"
हर पन्ने के हर लफ़्ज़ में इक राज़ था गहरा!
समझो तो वो किताब था न समझो तो चेहरा!!
इंसाफ़ उस अदालत में मिलेगा किसे जहाॅं!
झूठा वकील गूॅंगा गवाह और मुंसिफ़ हो बहरा!!
मेरी हसरतों का भी हैफ़! निकलना मुहाल था!
दर-ए-दिल पे था ऐ दोस्त! ग़ुर्बत का पहरा!!
ख़ुदा की तलाश में क्या भटकना दर-ब-दर!
वो तो हर जगह मौजूद है जंगल हो या सहरा!!
'परवेज़' उस ने ज़िंदगी में ख़ुशियाॅं बिखेर दीं!
किया उस ने कुछ नहीं बस दामन दिया लहरा!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
The Meanings Of The Difficult Words:-
*मुंसिफ़ = जज (judge); *हसरतों = अरमानों या आरज़ुओं या तमन्नाओं (unfulfilled desires); *हैफ़ = अफ़सोस (sorrow or Ah! or Alas! or What a pity!); *मुहाल = बेहद मुश्किल या ना-मुमकिन (extremely difficult or impossible); *दर-ए-दिल = दिल का दरवाज़ा (door of heart); *ग़ुर्बत = ग़रीबी (poverty); *दर-ब-दर = दरवाज़े-दरवाज़े (from door to door); *सहरा = रेगिस्तान (desert).