ऐ अहले वतन!' इस बार ख़ामोशी टूटेगी, ये ज़हर अब छिपाना नहीं!
वो अहद जो हमने आज़ादी के दिन खुद से किया था, वो रफ़्ता-रफ़्ता दम तोड़ गया है...
बड़े सुकून से दिल में ये ज़हर-ए-अना उतरता रहा हर घड़ी, कि इंसाफ़ न मिला, ज़मीर सो गया, और सवाल अधूरी कहानी रहे।
वो रिश्वतों की धूल, कुर्सी का ग़ुरूर, वो जात-पात की ज़ंजीरें, ये अमीर और ग़रीब की दूरी अब ईमान से भी ज़्यादा पुरानी रहे।
तेरी आवाज़ तो सुनी दुनिया ने पर तेरी औक़ात समझ गए, ये कागज़ात के ढेर, ये गंदगी, ये ज़ुल्म रोज़ की बात हो गए।
वो मेहनत को ज़रिया माना, मगर ताकत ने ही बाज़ार लूट लिया, यहाँ मेहनत की क़ीमत नहीं, ख़ुशामद की तौक़ीर है, ये अफ़सोस क्यों गूँजता नहीं?
अफ़वाहों की खेती बड़ी ज़ोरों पे है, और तर्क को ज़ंग लग गया, ज्ञान की जगह डिग्री ले ली, दिमाग़ी बीमारी को कलंक लग गया।
डिजिटल की बात करते हैं, पर गाँव की लड़की को पर्दे में रखा गया, आधी आबादी का कौशल दबा रहा, असमानता को रिवाज़ बताया गया।
सड़क पे गुस्सा है, ट्रैफ़िक में क़ातिल खड़ा है हर कोई, क़ानून का डर नहीं, पहचान का पर्दा लगा है हर कोई।
टाल-मटोल का कारोबार है, समय यहाँ ग़ुलाम है सबका, असफलता को कलंक माना, इसलिए नया करने से डरता है हर कोई।
तुझे बाहर की ताक़त क्या गिराती, तुझे तो तेरी 'चलता है' ने खा लिया, ये फ़ायदा उठाने वाले अजनबी नहीं, ये राज़ तूने खुद बताया।
अब उठ कि तेरी विरासत पुकारती है, क़सम दे रहे हैं शहीदों की, अंजाम से पहले होश में आ जा, वरना इतिहास में ख़ामोशी तेरा नाम होगा।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




