"नींद चैन खो कर खुद की वो बच्चों को सुलाती है,
उनके पालन-पोषण और घर की जिम्मेदारी में, बिन सोए जग जाती है,
इस दुनिया में वह इकलौती भगवान का दर्जा पाती है,
दोस्तों,वह मां कहलाती है।"
क्या लिखूं मांँ पर मैं,मैं उसका ही तो हिस्सा हूं,
मंच पर गूंज रहा हूं मैं,मैं उसका ही तो किस्सा हूं,
जिन शब्दों का मायाजाल बुनकर मैं अक्सर तुम्हें सुनाता हूं,
उन शब्दों के पहले अक्षर मांँ ने ही मुझको सीख लाए,
फिर कैसे मैं उन शब्दों में उसकी ममता को तोल दूँ,
क्या लिखूं मांँ पर मैं,मैं उसका ही तो हिस्सा हूं,
मंच पर गूंज रहा हूं मैं,मैं उसका ही तो किस्सा हूं,
आज खड़ा हूंँ आप लोगों के बीच दूर से चलकर आया हूंँ,
लेकिन वह पहला कदम बढ़ाना मांँ ने हीं मुझ को सीखाया है,
फिर कैसे उस दौड़ भाग को उसका फर्ज बता कर छोड़ दूं,
क्या लिखूं मांँ पर मैं,मैं उसका ही तो हिस्सा हूं,
मंच पर गूंज रहा हूं मैं,मैं उसका ही तो किस्सा हूं,
आज मैं इतना बड़ा हो गया,मां पर कविता सुनाता हूंँ,
छोटा सा बच्चा था मैं,उसकी गोद में खेला हूंँ,
उस गुरु के हाथों बड़ा हुआ मैं,उसका सच्चा चेला हुँ,
क्या लिखूं मांँ पर मैं,मैं उसका ही तो हिस्सा हूं,
मंच पर गूंज रहा हूं मैं,मैं उसका ही तो किस्सा हूंँ।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




