आँखों की भाषा भी अजीब होती।
खुशी और गम में आँखें नम होती।।
उठी हुई आँखें रौब प्रदर्शित करती।
झुकी जब भी होती निराश होती।।
तिरछी आँखें शर्म में डूबी समझो।
लाल आँखें क्रोध का प्रतीक होती।।
झिलमिलाती आँखें प्रेम ओतप्रोत।
जिंदा दिल लोगों की पहचान होती।।
निश्चल आँखें बचपन की मासूमियत।
बुजुर्ग की 'उपदेश' पूरी कहानी होती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद