कविता भावों की नदी,
हृदय है, उसका सोता।
साहित्य के सागर पर,
पाठक लगाते हैं गोता।
कोरे कागज के खेत पे,
कवि विचारों को बोता।
बाँझ पड़ी मनोभूमि को,
अमृत धारा से भिगोता।
निज पीड़ा को रख दूर,
पर पीड़ा, से वह रोता।
शब्द रूपी मोतियों को,
भाव- माला में पिरोता।
जिसने पढ़ी रचनाएँ वो,
जीवन पर्यंत खुश होता,
जिसने पढ़ा नहीं कुछ,
अमूल्य धन वह खोता।
कविता भावों की नदी,
हृदय है, उसका सोता।
🖊️सुभाष कुमार यादव