सहमी सी थी एक ख़ुशी
धीरे से उदासी उसकी छीनी
हो गई वो बावरियाँ,
सपनों में विचरने लगी
बिन पंख वो उड़ने लगी
सहमी सी थी एक ख़ुशी
परियों के देश, वो पहुँच गई
सोचा न था, सब था वहीं
सच है या भ्रम, वो सोचने लगी
हो गई वो गुमसुम,
बिन जवाब वो झूमने लगी
सहमी सी थी एक ख़ुशी
तन्हाई पीछे छोड़, खुशियाँ यहाँ
सन्देश उत्तम फैलाने लगी
सच्ची केवल वजह यहीं, गाने लगी
हो गई वो स्थिर गंभीर
पंतग के जैसे हिलने डुलने लगी
हर वक़्त मुस्कुराने लगी
सहमी सी थी एक ख़ुशी
कोई नहीं किसी का समझाने लगी
कर्म बंधन रखे संग, कहने लगी
बेहालीमें भी उर्मि, चूमने लगी
हो गई वो मस्तानी
सफ़र लंबा इंतज़ार करने लगी
सहमी सी थी एक ख़ुशी
अब,,,, खुशियोंमें "बसर" करने लगी