आज मौसम का कोई भरोसा नहीं,
काले बादल बरसने को बेताब हैं, ...
फर्क़ पड़ता नही मौसमी शाम का,
लोग तैयार है छूरियो को लिये,
बिजलियों का कोई है भरोसा नही,
कब गिरे ये तेरे हौसलों की डगर ,
वज्र आघात का है सितम हो चला,
कैसे पनघट में पानी कोई अब पिए,
प्यास मिटती नही आग बुझती नही, .
अब तो बारिश का कोई भरोसा नही ,
आज ''''''
सर्वाधिकार अधीन है