हम , मुसाफिर हैं पहचान मुझे गर नहीं समझें तो तुम समाजी नहीं
हम हैं वहीं रहेगें क्या _ फिर तुझे कौन पहचानेगा , ए वसी
मुझे मालूम नहीं था बेघर होकर शहर के मकानात से गुजरते रहना होगा
हमने देखा है कुछ कबरों पर ऐसा महल ढूंढने से उनका तारीख नहीं मिलता
वसी अहमद क़ादरी
वसी अहमद अंसारी
28 मई 2025