कहते हैं दुनिया में किसी पर आज भरोसा करना आसान नहीं है। सच है पर किसी से जुड़ने के लिए तो उस पर भरोसा करना ही पड़ता है। फिर कहते हैं कि किसी से जुड़ना भी सही नहीं है पर बिना जुड़े कैसे रहा जा सकता है।
जिंदगी में,अलग-अलग मोड़ पर अलग-अलग स्थिति में किसी न किसी पर विश्वास करना ही पड़ता है।
असल में जुड़ना गलत नहीं है। किसी से जुड़ना तो खुशी और साथ दोनों देता है। समस्या असल में वह उम्मीद है जो हम उस इंसान से करने लगते हैं जिससे हम जुड़ने लगे हैं। हमारे बस में सिर्फ यही है कि हम उसे अपना आप दे दें, उसे यह विश्वास दे सके कि वह जब चाहे हम पर भरोसा और उम्मीद दोनों कर सकता है। लेकिन जब वह हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता, तब हम उस पर अपना भरोसा खोने लगते हैं और वह हमें धीरे-धीरे विश्वास के लायक नहीं लगता है। और जब यह उम्मीद टूटती है कि वह हमसे वैसे नहीं जुड़ा जैसा कि हम उससे जुड़े हैं, तब इन उम्मीदों का टूटना ही दिल में दर्द का सबब बनता है। तो क्या किसी पर उम्मीद करना ही छोड़ दें? क्या किसी से उम्मीद लगाकर सिर्फ आंसू और दर्द ही मिल सकता है? दिक्कत तो उम्मीद लगाने से भी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि हम किसी से उम्मीद करना ही छोड़ दें। यह तो संभव ही नहीं है।
अब यह कैसे हो सकता है कि हम किसी चित्रकार से यह भी उम्मीद कर सकें कि वह एक अच्छा गायक भी हो। वह अपने उस किरदार में तो कामयाब है पर जब हम उस किरदार से किसी और किरदार के गुणों की उम्मीद करते हैं, तब उम्मीदें तो टूटेंगी ही। किसी इंसान से, किस परिस्थिति में, किस समय पर, किसी बात के लिए और कितना यकीन करना है, कितनी उम्मीदें रखनी हैं, यदि हम यह समझ लें तो यकीनन उम्मीदें दर्द नहीं देतीं हैं।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




