बहनों की इज़्ज़त जो लूटे,
ऐसे होते भाई नहीं।
रक्षाबंधन की लाज रखो,
क्योंकि हो तुम कसाई नहीं।1️⃣
तरसाओ नहीं अपनी ही बहनें,
दो-दो पैसे ले देकर।
अपनी ग़लती स्वीकारोगे,
तभी मनोगे ज़िन्दा ईश्वर।2️⃣
तुम छल ना करो, इसकी, उसकी,
चाहे हो वो जिसकी भी बहन।
तुम धन्य सनातन में जन्मे,
ना दाग़ लगाओ, बहन अनमोल रतन।3️⃣
तुम एक नहीं अकेले ही,
जो क्रोधित सामाजिकता पर।
कुछ पहलू है, हां! बदले जाना,
आवश्यक जिनका सकारात्मक असर।4️⃣
नहीं मानोगे, तो क्या दोगे ?
आने वाली तुम पीढ़ी को?
क्या सिखलाओगे कि, भारत की,
बहन-बेटी पर फिल्म बनी थी
"The Kerala Story" को ?5️⃣
कि प्यार ज़ाल में उलझाकर,
बदला था धर्म बहन का ही !
ले जाकर शोषित उसे किया,
और पेट दिया सहन कर ही !6️⃣
The Kerala Story कितना कुछ समझाती,
कि अब तो आंखें खोल ही लो।
लड़की, बहना, बेटी हो चाहे जिसकी,
छिछोरी हरकतें ना झोल ही दो।7️⃣
सब्जबाग जो दिखा ले जाते,
बहन-बेटियां, चोरी से।
Brain wash कर-कर के,
कभी प्यार से, तो कभी सीनाज़ोरी से।8️⃣
लड़की ज़ात पर लगा वो देते,
अंग-भंग करने का पहरा।
अब देखो कि किसके माथे,
बंधे उसी लड़की का सहरा।9️⃣
जौहर करती आई इसी कारण,
राजपूतनियां महलों में।
भाग कटे ना, अंग लगे ना,
फिरंगी कोई, राजा मरे पीछे।🔟
तुम क्षत्रिय हो, हो धीर-वीर,
है राजपुताना खून तुममें।
फ़िर इसकी-उसकी क्यों करते ?
क्यों भूले बैठे भारत हममें।1️⃣1️⃣
कोई राजा घनानंद भी था,
और कोई था राजा इक हरिश्चंद।
इक भोग विलास में डूबा राज्य,
इक राज्य दान कर दिया स्वप्न।1️⃣2️⃣
इतिहास भरा गाथाओं से,
तुम में भी इक गाथा बहती है।
इक प्रजा की दौलत लुटा रहा,
इक डोम के पानी में मछली रहती है।1️⃣3️⃣
इक राजा गौरी खान था,
और इक राजा पृथ्वीराज चौहान।
इक क्षमाशीलता का स्वामी,
इक ने धोखे से लिए प्राण।1️⃣4️⃣
इक कर देता था माफ़ दोबारा,
रण में घुटनों बैठे शत्रु।
इक केवल इंतज़ार में था,
कि पा जाऊं मौका,
दिखलाऊं अपना जादू।1️⃣5️⃣
इक राजा विक्रमादित्य था,
जिसे था चोर पकड़ने का वरदान।
वो अपनी सूझ-बूझ से ही,
कर देता निर्णय, ये भला है,
और ये है बेईमान।1️⃣6️⃣
बहुत सी और कथाएं है,
भारत की कुशल यौवनाओं की।
इक रानी अहिल्याबाई होलकर थी,
इक रानी लक्ष्मीबाई की।1️⃣7️⃣
पति निधन हुआ, राज्य दीया बुझा,
फ़िर भी वो लड़ी, राज्य के हित।
मरते-मरते भी, वचन यही थे,
मेरी देह को ना छूने पाएं,
कर ना पाएं फिरंगी कोई अहित।1️⃣8️⃣
इतिहास उठाकर देखो तो,
पलटो तो पुस्तक के पन्ने।
तुम देखोगे, निर्धन नहीं तुम,
भारत में जन्में तुम संपन्नें।1️⃣9️⃣
इक चाणक्य से गुरु हुए,
इक शिष्य हुआ चंद्रगुप्त सा।
लग कर के गुरु के चरणों,
भारत राज्य पाया निष्कंटक था।2️⃣0️⃣
बचपन में ही जिसे गुरु मिला,
देखो तो उसके सौभाग्य।
जो गुरु बिना हो बड़ा हुआ,
सोचो कितना बड़ा दुर्भाग्य।2️⃣1️⃣
गुरु का मिलना, गुरुवाणी सुनना,
ये ही करता है आह्वान।
कल का प्राणी कैसा होगा,
धोखा देगा या होगा स्वाभिमान।2️⃣2️⃣
इक बड़े ही संत हृदय हुए,
था नाम उनका गुरुनानक साहब।
सिर कटा दिए अपने नवयौवन नौ पुत्रों के,
हिचके ना ज़रा, दिया मोह त्याग।2️⃣3️⃣
इंसान वही जो परहित में,
अपने सुख का कर देता त्याग।
तेरा-मेरा नहीं वो करता,
नहीं फैलाता, दुर्भावना की आग।2️⃣4️⃣
छोटी-छोटी नौ कन्याएं,
ढूंढे फिरता जो नवरात्रि में।
उसे देखा है, छेड़ते मैंने,
लड़कियों को अंधरात्रि में।2️⃣5️⃣
नहीं! नहीं! नहीं! ये झुठला दो,
कह दो कि हम नहीं ऐसे बनें।
भारत के वीर सपूत है हम,
इक छोड़, बाकि सब है बहनें।2️⃣6️⃣
आधुनिकता जो पहन ली है,
तो भी भारत, India नहीं बनता।
ये फ़िर भी सिंधु घाटी की पुरानी सभ्यता ही है,
जिसको पावन नदियों ने सींचा।2️⃣7️⃣
ये ऐसा है कि जैसेकि,
पावन कोख हमारी मईया की।
हम सब ही भारत वासी,
जन्में चाहें जिस भी नगरी।2️⃣8️⃣
जब नाम घटा तो सबका ही,
बंधक था, रोया था सारा भारत।
जब नाम हुआ रोशन, स्वतंत्र था,
भारत में सबका ऊंचा मस्तक।2️⃣9️⃣
कोई भी प्रतियोगिता हो
तो हो वो खुले हृदय से।
जिसमें प्रतियोगी इक्छुक हो,
परहित अर्पित कर, बिना हार के भय।3️⃣0️⃣
जो हरिश्चंद राजा डरता,
महलों के सुख को छोड़ने में।
तो कहो कैसे मैं याद रखती ?
उसे इस कविता में जोड़ने में।3️⃣1️⃣
केवल वो एक परीक्षा थी,
जिसमें थे हरिश्चंद पास हुए।
आकर के स्वपन में जो था लिया,
वही राज्य था वापस मुनि लौटाएं।3️⃣2️⃣
और कहा था, हे राजन तुम धन्य!
नहीं चूके करने से कर्म निर्वाह।
जाओ! विश्व तुम्हें याद रखेगा,
और चलेगा जैसी चले तुम राह।3️⃣3️⃣
सत्य का पथ पथरीला है,
और कांटों से है भरा हुआ।
फ़िर भी हम सबको चलना है,
इसी सत्य की अटल राह।3️⃣4️⃣
सत्य सनातन धर्म में भी,
हमको है यही सिखलाया गया।
जहां चाह हो राज्य के हित की,
वहां त्याग करो, करो खुद को स्वाह।3️⃣5️⃣
जब तक कि तुम बलशाली हो,
और कर सकते परहित में त्याग।
तब तक तो तुम रूकना मत ही,
करते रहना भारत भूमि बाग।3️⃣6️⃣
शब्दों की गूढ़ व्याख्या को,
समझोगे तो पाओगे।
तुम, मैं और बाकि सब नहीं अलग-थलग।
सब में हम, हम में सब आओगे।3️⃣7️⃣
_____मनीषा सिंह
आगे पढ़ें - अध्याय 3 - भटके राही