(बाल कविता)
अपने पास बुलाता चाँद
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रोज़ रात में आता चाँद ।
श्वेत चाँदनी लाता चाँद ।।
करता रहता कर्म निरंतर
कभी नहीं अलसाता चाँद ।
पूरब से पश्चिम तक चल कर
मंज़िल अपनी पाता चाँद ।
कभी रुके, ना हिम्मत हारे
चलना सदा सिखाता चाँद ।
नील गगन से उज्ज्वल किरणें
धरती पर बरसाता चाँद ।
कभी-कभी लगता है जैसे
मंद-मंद मुस्काता चाँद ।
शुक्ल पक्ष में तीव्र चाँदनी
हर घर में पहुँचाता चाँद ।
कृष्ण पक्ष में पता नहीं क्यों
बहुत देर से आता चाँद ।
घटता-बढ़ता रहता हरदम
कभी-कभी छिप जाता चाँद।
पूरनमासी को खुश होकर
पूरा - पूरा आता चाँद ।
और अमावस में जाने क्यों
मुखड़ा नहीं दिखाता चाँद ।
विज्ञानी कहते धरती के
चक्कर बहुत लगाता चाँद ।
आओ मुझको जाँचो परखो
अपने पास बुलाता चाँद ।
~राम नरेश 'उज्ज्वल'