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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

ये कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं – कमलकांत घिरी

"ये कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं,
अपनी खामियों का खामियाजा वो हमसे भरवाने लगे हैं।।1।।

जो कल तक गुजरते थे नजरें झुकाकर गलियों से हमारी,
आज वे ही हमें नज़रें दिखाने लगे हैं।।2।।

जिन्हें समझते थे हम खुली किताब सा कभी,
वो अपने राज़ के परदे उठाने लगे हैं।।3।।

कल तक जो तरसते थे चंद पल बिताने को हमसे,
आज हमसे बात न करने के बहाने बनाने लगे हैं।।4।।

अब तो कोई नींद से जगा दो यारों,
हमें बड़े बुरे ख़्वाब सताने लगे हैं।।5।।


अब के सावन में बरसात कम क्या हुई,
वो आंखों से पानी बहाने लगे हैं।।6।।

माना दूर हुए हम उनसे कुछ मजबूरियों की खातिर ,
वो हैं कि हमें दुनिया के आगे बेवफा ठहराने लगे हैं।।7।।

अब कह रहे हैं सभी कि एक पल में हम भुला दें उन्हें,
इतिहास गवाह है पहला प्यार भुलाने में जमाने लगे हैं।।8।।
ये कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं..।।"

----कमलकांत घिरी




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (7)

+

Amit Shrivastav said

Behatreen 👍👏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

अब के सावन में बरसात कम क्या हुई, वो आंखों से पानी बहाने लगे हैं....aap khuskismat hain warna paani to hamne bahaya hai....

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut sundar prastuti

रीना कुमारी प्रजापत said

वाह! कितना खूबसूरत लिखा है दिल को छू गई आपकी रचना

कमलकांत घिरी said

बहुत बहुत धन्यवाद🙏

वन्दना सूद said

बहुत खूब 👏👏

Tulsi patel said

बहुत बढ़िया सर...👌🏻👏🏻

कमलकांत घिरी replied

Thank you Patel ji🙏

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