चराग जब हो जाते हैं गुल अँधेरी रात में
कुछ याद के उजाले रह जाते हैं साथ में
कितने हसीं ख्वाब हैं पलकों में सिमटते
आंख खुलते ही परछाई मगर हैं हाथ में
बिखर जाती है भीनी एक खुशबू चार शू
जैसे खिलती है कली कोई आधी रात में
कुछ ना कहके तो सभी कुछ कह गया है
अर्थ कितने हैं निकलते ये तुम्हारी बात में
मौन रहता है यहाँ दास कुछ नहीं बोलता
दिल में गहरा दर्द और आँख हैं बरसात में
दिल का दर्पण टूट कर हो गया है चूर चूर
बेवफाई का दरिंदा ये लग गया है घात में II