बिना मां के श्रजन और श्रृष्टि,
दोनों ही अधूरी है।
रहे अस्तित्व मानव का,
जगत को मां जरूरी है।।
सभी रिश्तों से प्यारा
मां की ममता का ही रिश्ता है।
स्वयं भगवान की भी परवरिश,
हुई मां से पूरी है।।
मनाया लाख पत्थर को,
करी रब से दुहाई थी।
असह पीड़ा प्रसव की सह,
तुझे दुनियां में लाई थी।।
वो स्वर्णिम दिन दोबारा फिर कभी ,
आया न जीवन में।
खुशी न आज तक पाई,
तुझे पाकर जो पाई थी।।
Shikha Prajapati
Kanpur dehat