तन्हाई का आलम हो या जुदाई का,
आंखें सजल तो ही जाती हैं,
ये और बात है की कोई मुस्कुरा कर गम को छुपा लेता है,
तो कोई आँशू बहाकर,
हम न तो रो सकते हैं और न ही मुस्कुरा,
फितरत ही कुछ ऐसी बन गयी है,
गमों की फेरहिस्त बड़ी लंबी है,
आदत सी पड़ गयी दफन करने की,
समान्य मनोदशा को बरकरार रखकर....!!
#संजय श्रीवास्तव