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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

वो जताता तो था…

वो जताता तो बहुत, मगर निभाना भूल गया,
दिल में रखा तो सही, पर ठिकाना भूल गया।

हर एक वादा लिपटा था उसकी मुस्कान में,
वो तो ख़ुद को भी मुझमें ही पाना भूल गया।

तेरी यादों का मौसम बरसता ही रहा,
पर वो भीगते लफ़्ज़ों को सुखाना भूल गया।

मैं तो हर मोड़ पे उसको पुकारती रही,
वो सिसकियों का मतलब समझाना भूल गया।

मुझसे पूछा भी नहीं, कैसा है ये सफ़र,
साथ चलकर भी मेरा कारवाँना भूल गया।

मैंने खुद को भी रक्खा था उसकी ख़ातिर,
वो मेरी ख़ुदी को अपनाना भूल गया।

मैंने आँसू से लिखा था उसका हर एक नाम,
वो मेरी पलकों का क़ीमत लगाना भूल गया।

जो भी लम्हा था हमारे दरमियाँ साँसों सा,
वो हर एहसास को बस आज़माना भूल गया।

मैं जो टूटी तो समेटा नहीं उसने मुझको,
और फिर मुझमें से मुझको उठाना भूल गया।

मैंने इक रात में सब कुछ उसे सौंप दिया,
वो मेरी रूह का किराया चुकाना भूल गया।

मेरी खामोशियों में भी थी उसकी सदा,
वो मेरे सन्नाटों को पढ़ पाना भूल गया।

जितना चाहा था उसे, खुद से भी ज़्यादा शायद,
पर वो मेरे वजूद में समाना भूल गया।

शारदा” कह गई वो लफ़्ज़ जो लफ़्ज़ न थे कभी,
वो जो समझ न सका, दिल से निभाना भूल गया।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

Shiv Charan Dass said

वाह वाह! आप अभिव्यक्ति की सचमुच शारदा ही तो हैँ!

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