दुख को सम्भाल कर खुद भी सम्भल गए।
बदलते वक्त के दौर में हम भी बदल गए।।
सपनों की बात छोड़ो आँखों में छिपे रहते।
तुम्हारी मुस्कान के खातिर राह बदल गए।।
अब जिन्दगी से कोई शिकवा नही हमको।
ज़माने की ठोकरों से हमदर्द ही बदल गए।।
मेरी मंजिल कदमों के करीब रही फिर भी।
अपनी प्रीति को तुम्हारी जीत से बदल गए।।
हर दर्द में कुछ सीख मिलती रही 'उपदेश'।
उसी सीख से ही तुम्हारा नसीब बदल गए।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद