वंदनीय बनो
ठोकर खाकर खाकर
जिसने स्वयम् को सवाँरा है
अपने सपनों को मंजिल तक पहुँचाया है
उसी के दिल में भावनाएँ जिन्दा हैं
उसी के शब्दों में सभ्यता है
उसी की वाणी में विनम्रता है
बाक़ी सबके दिल ,शब्द और वाणी केवल अहम् से सजे हैं
इन्सान वही वंदनीय है
जो सब कुछ पाकर सहज हो जाए..
वन्दना सूद