भूले नहीं वो नशेमन मगर अब वहांँ मुझे जाना नहीं
मिट कर निभा चुकी हर रश्म अब ख़ुद को मिटाना नहीं
मैं टूटी कहाँ-कहाँ से वाकिफ़ है दर-ओ-दिवार
बिखरने की कसक अब किसी को बताना नहीं
यूँ तो बहारों की मल्लिका से मुझे नवाजा गया
पर ताकीद थी पसंदीदा फूलों के क़रीब जाना नहीं
ग़म-ए-हयात ऐसा कि ज़ब्त किया दर्द बेगुनाही का
मैंनें भी ख़ामोशी से जताया उसूलों से मेरे टकराना नहीं