जिसकी फितरत में रुलाकर हँसना।
खुदाई का काम उसके पेच कसना।।
विकास की परिभाषा बदलती नही।
योजनाएँ सिखा रही है पेट कसना।।
इतनी नफरत उजाड़ने में लगा दी।
बसाने में लगाते पूरा होता सपना।।
अब डर ज़ख्म से नही मनोदशा से।
प्यार करते हर कोई होता अपना।।
चक्रव्यूह रचने वाले अगर गैर होते।
'उपदेश' न रोते व्यथित मन अपना।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद