हास्य -व्यंग्य
उल्लू बनाने की कला
डॉ.एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
धीरे-धीरे सभी को उल्लू बनाती रही,
मीठी-मीठी बातों से सबको घुमाती रही।
कभी कहती "अरे, बस पाँच मिनट में पहुँचूँगी,"
और पाँच घंटे बाद भी न उसकी सूरत दिखी।
कभी बहाना "मोबाइल की बैटरी ख़त्म हो गई,"
कभी "नेटवर्क नहीं था, इसलिए कॉल कट हो गई।"
हम भी बेचारे, उसके झूठ पर हँसते रहते थे,
और दुनिया को बताते थे, "अरे, वह तो बहुत भोली है।"
उसकी हर अदा, एक नया झूठ था,
उसका हर वादा, एक नया सूट था।
वह तो बस अपने में ही मस्त रहती थी,
और हमें उल्लू बनाकर खुश रहती थी।
वह तो अपनी दुनिया में रहती थी,
और हम उसकी दुनिया में खो जाते थे।
वह तो बस अपने को ही खुश रखती थी,
और हम उसे खुश रखने में ही अपना समय बर्बाद करते थे।