अब तेरी ग़ज़ल से आराम नही आता।
दिल को छू जाने का पैग़ाम नही आता।।
भटकते रहती तेरे नाम के चारो तरफ।
तेरे दिल से बुलावे का इनाम नही आता।।
इतना कठोर हो गया 'उपदेश' रहबर मेरा।
शायद उसके होंठो पर नाम नही आता।।
इंतजार रहता कभी आएगा मेरे दर पर।
पुरानी यादो में अब आराम नही आता।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद