धंसे है दलदल में, भ्रष्टाचार के।
आरोप है बड़े-बड़े, अनाचार के।
कुर्सी पर उनको बिठाया गया,
निर्णायक मंडल में निर्णायक उनको बनाया गया।
होना उनको कटघरे में था,
पर उनको सर आंखों पर बिठाया गया।
ईमानदारी का गला घोंटकर,
अयोग्य है,अधिकारी बनाया गया।
योग्य होते हुए भी, प्रतिभा को छुपाया गया।
कुर्सियां पाईं किस तरह,
अंकी, इंकी ,डंकी लाल ने।
खुले भेद तब मालूम हुआ,
लोकतंत्र के हत्यारे हैं ये।