उंगली हर बार मेरी ही तरफ क्यों,
सहेजती,संभालती,समेटती स्वयं को,
हो चाहे जितनी भी तोहमतें, उलझने
हो चाहे बिखराव कभी हर तरफ,
साफ करती कुछ धुंधली सी हँसी
छुपाकर अपने आँसू जो दबे थे भीतर,
उंगली हर बार मेरी ही तरफ क्यों?
क्या छुपा लेना,दबा लेना चलेगा संग नियति बनकर?